उत्तरकाशी और यमुनोत्री की राजनीति में ‘बिजल्वाण फैक्टर’, समीकरणों का नया चैप्टर

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’ 

उत्तराखंड की राजनीति में हमेशा से ही अप्रत्याशित घटनाक्रम होते रहे हैं। उत्तरकाशी जिले की यमुनोत्री विधानसभा सीट इसका नया उदाहरण है। दीपक बिजल्वाण के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने से इस सीट के राजनीतिक समीकरणों में भारी फेरबदल हुआ है, जिसने न केवल भाजपा के भीतर हलचल मचा दी है, बल्कि कांग्रेस और अन्य संभावित उम्मीदवारों के लिए भी नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। यह घटनाक्रम केवल एक दल-बदल से कहीं अधिक है। यह 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए एक बड़ी राजनीतिक बिसात की शुरुआत मानी जा रही है।

भाजपा की रणनीति और आंतरिक विरोध:

दीपक बिजल्वाण के भाजपा में शामिल होने को एक सोची-समझी रणनीति के तहत देखा जा रहा है। उत्तरकाशी जिला पंचायत की कुर्सी को हासिल करने और यमुनोत्री सीट पर पकड़ मजबूत करने और 2027 में ‘तीनों विधायक भाजपा के’ होने के लक्ष्य को साधने के लिए यह कदम उठाया गया है।

वहीं, पार्टी ने तुरंत जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए रमेश चौहान का नाम घोषित कर इस नए समीकरण को मजबूती दी है। हालांकि, इस ‘डील’ की कीमत भाजपा को अपने ही घर में विरोध के रूप में चुकानी पड़ रही है।

पूर्व विधायक केदार सिंह रावत और 2022 में भाजपा से टिकट के प्रबल दावेदार रहे मनवीर चौहान के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है। दोनों ही नेता 2027 में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे थे, लेकिन अब उनके रास्ते में एक बड़ा रोड़ा आ गया है। बिजल्वाण की एंट्री ने उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। पार्टी के भीतर से उठे विरोध के स्वर, जिन्होंने प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को पत्र लिखे, यह दर्शाते हैं कि यह फैसला आसानी से स्वीकार्य नहीं है।

वहीं, महेंद्र भट्ट का यह स्पष्ट संदेश कि विरोध करने वाले नेता खुद के लिए ही मुसीबत खड़ी कर रहे हैं, यह साफ करता है कि पार्टी आलाकमान इस फैसले पर अडिग है और दीपक बिजल्वाण को पूरा समर्थन दे रही है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2027 में बिजल्वाण को यमुनोत्री सीट से टिकट मिल सकता है।

दीपक बिजल्वाण के भाजपा में जाने से कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा है। यमुनोत्री में कांग्रेस के पास एक मजबूत और लोकप्रिय चेहरा था, जो अब भाजपा के पाले में है। इससे 2027 में कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ गई हैं, क्योंकि उसे अब एक नए चेहरे की तलाश करनी होगी जो भाजपा के इस नए समीकरण का मुकाबला कर सके।

इस घटनाक्रम ने यमुनोत्री के निर्दलीय विधायक संजय डोभाल की राजनीतिक स्थिति को भी प्रभावित किया है। यह अटकलें थीं कि अगर बिजल्वाण कांग्रेस या निर्दलीय चुनाव लड़ते तो डोभाल भाजपा में शामिल हो सकते थे और उन्हें टिकट भी मिल सकता था। हालांकि, यह केवल अटकलें और चर्चाएं थीं। वैसे राजनीति संभावनाओं का खेल है।

लेकिन, अब जब बिजल्वाण के भाजपा में आ गए हैं, तो इन संभावनाओं पर विराम लगना तय माना जा रहा है। डोभाल के लिए अब अपनी सीट को बरकरार रखने की चुनौती और भी जटिल हो गई है, क्योंकि उन्हें भाजपा के नए उम्मीदवार (संभावित रूप से बिजल्वाण) का सामना करना होगा।

दीपक बिजल्वाण का राजनीतिक कौशल: दीपक बिजल्वाण ने इस कदम से अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया है। 2022 का चुनाव हारने के बावजूद, उन्होंने लगातार सक्रिय रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। लोगों के बीच रहना और उनकी समस्याओं का समाधान करना उनकी रणनीति का हिस्सा रहा है। भाजपा में शामिल होकर उन्होंने एक ‘तीर से कई निशाने’ साधे हैं:

अपने लिए सुरक्षित भविष्य: उन्होंने एक ऐसी पार्टी में प्रवेश किया है, जिसके पास सत्ता में आने की प्रबल संभावना है, और जहां उन्हें 2027 में टिकट का आश्वासन मिलने की उम्मीद है।

विरोधी खेमों को कमजोर करना: उन्होंने कांग्रेस को एक मजबूत चेहरे से वंचित कर दिया है और संजय डोभाल के भाजपा में शामिल होने की संभावनाओं को खत्म कर दिया है।

आंतरिक विरोध को साधने की चुनौती: अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के भीतर उठे विरोध को शांत करना और अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना है। प्रदेश अध्यक्ष का स्पष्ट संदेश उनके पक्ष में है, लेकिन वास्तविक लड़ाई उन्हें ही लड़नी होगी।

एक नया राजनीतिक अध्याय

यमुनोत्री विधानसभा सीट पर दीपक बिजल्वाण की एंट्री ने एक नया राजनीतिक अध्याय शुरू किया है। यह केवल एक दल-बदल नहीं, बल्कि 2027 के चुनावों के लिए एक बड़ी बिसात है। भाजपा ने यमुनोत्री में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक जोखिम भरा, लेकिन संभावित रूप से फायदेमंद कदम उठाया है। वहीं, कांग्रेस और संजय डोभाल जैसे नेताओं के लिए यह एक नई चुनौती है।

‘बिजल्वाण फैक्टर’ सबसे महत्वपूर्ण

यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले डेढ़ साल में दीपक बिजल्वाण भाजपा के भीतर के विरोध को कैसे साधते हैं और क्या उनका यह ‘मास्टरस्ट्रोक’ 2027 में उनके और भाजपा के पक्ष में जाता है। फिलहाल, यमुनोत्री की राजनीति में ‘बिजल्वाण फैक्टर’ सबसे महत्वपूर्ण हो गया है, और इसका परिणाम जानने के लिए हमें 2027 तक का इंतजार करना होगा।

दीपक के बहाने राजेंद्र भंडारी की चर्चा

दीपक बिजल्वाण के भाजपा में शामिल होने के बाद, सोशल मीडिया पर एक बार फिर कांग्रेस के पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी की वर्तमान स्थिति को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। कई लोगों का कहना है कि भाजपा, दीपक बिजल्वाण को भी उसी तरह राजनीतिक रूप से कमजोर कर देगी, जैसे राजेंद्र भंडारी के साथ किया, जहां न उनकी पत्नी को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जितने दिया गया और न ही खुद भंडारी को राजनीति में मजबूती मिल पाई।

विरोधियों की योजना

राजनीतिक जानकारों का दावा है कि उत्तरकाशी जिले, खासकर यमुनोत्री और पुरोला विधानसभा के कुछ नेता, भीतर ही भीतर संगठन के जरिए दीपक को कमजोर करने की योजना पहले ही बना चुके हैं। यह प्लान धीरे-धीरे जमीन पर उतारा जाएगा, ताकि 2027 के विधानसभा चुनाव में उन्हें रोकने के लिए हर संभव दांव खेला जा सके। भले ही वे खुलकर विरोध न करें, लेकिन पर्दे के पीछे से उन्हें गिराने की पूरी कोशिश जरूर करेंगे।

भाजपा पर उठा रहे सवाल

भाजपा की नीतियों को लेकर भी लोग सवाल उठा रहे हैं। उनका आरोप है कि भाजपा अपने फायदे के लिए नेताओं का राजनीतिक करियर खत्म करने में माहिर है, और इसके कई उदाहरण लगातार सामने आते रहे हैं।

एक तस्वीर यह भी

हालांकि, एक दूसरी तस्वीर भी है, कांग्रेस से भाजपा में आए कई नेता आज सरकार में कैबिनेट मंत्री पद तक पहुंच चुके हैं और सत्ता में मजबूत स्थिति में हैं। यही वजह है कि राजनीतिक हलकों में इस बहस का कोई आसान निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा है।

राजनीति के माहिर खिलाड़ी

लेकिन, अब एक और पहलू भी चर्चा में है, वह है दीपक बिजल्वाण का अब तक का ट्रैक रिकॉर्ड। जानकारों का कहना है कि उनके राजनीतिक सफर को देखते हुए वह भाजपा के भीतर अपने लिए मजबूत जगह बना लेंगे। इतना ही नहीं, विरोधियों को भी अपने पक्ष में करने में वह माहिर हैं। कम उम्र में ही उन्हें राजनीति का चतुर और माहिर खिलाड़ी माना जाने लगा है।

 

 

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