दीपक बिजल्वाण, इतिहास लिखेंगे या इतिहास के पुराने पन्नों में दर्ज हो जाएंगे?

उत्तरकाशी ही नहीं बल्कि, प्रदेश की राजनीति में युवा चेहरों में सबसे ज्यादा चर्चित नाम अगर कोई है, तो वो दीपक बिजल्वाण हैं। छात्रसंघ की राजनीति से अपने करियर की शुरुआत करने वाले दीपक, अब केवल उत्तरकाशी ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड के बड़े राजनीतिक चेहरों में गिने जाते हैं। उत्तरकाशी जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव एक नया इतिहास लिखने को तैयार है। इस कुर्सी के साथ विवाद और मिथक दोनों जुड़े हुए हैं। दीपक के पास नया इतिहास लिखने और मिथकों को झूठा साबित करने का मौक़ा है। क्या वो ऐसा कर पाएंगे इसके लिए बस कुछ दिन का इंतजार करना होगा? 

छात्र राजनीति से जिला पंचायत तक

दीपक बिजल्वाण ने छात्रसंघ के बाद क्षेत्र पंचायत और फिर लगातार तीन बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक पकड़ साबित की है। अपने दूसरे कार्यकाल में ही उन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्ज़ा कर लिया था, जिससे वे सबसे कम उम्र के जिला पंचायत अध्यक्षों में से एक बन गए। दीपक ने अपने करियर में कई बड़े विवादों और आरोपों का सामना किया है, लेकिन हर बार वे इनसे बाहर निकलने में कामयाब रहे। यह साबित करता है कि वे राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, जो अकेले दम पर चुनौतियों का सामना करने का साहस रखते हैं। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे एक बार जिसके लिए खड़े हो जाते हैं, उसे पीछे हटाना मुश्किल हो जाता है, और उनकी टीम भी हर मुश्किल वक्त में चट्टान की तरह उनके साथ खड़ी रहती है।

“मनहूस कुर्सी” का मिथक और दीपक की चुनौती

उत्तरकाशी में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी को “मनहूस कुर्सी” भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस कुर्सी पर बैठा, उसका राजनीतिक करियर यहीं तक सिमट गया। इतिहास के पन्नों में ऐसे कई उदाहरण दर्ज हैं, लेकिन दीपक बिजल्वाण इन्हीं मिथकों को बदलने और एक नया इतिहास रचने का दावा कर रहे हैं। वे जिस बात को ठान लेते हैं, उसे पूरा करने के लिए पूरी ताकत झोंक देते हैं। जोखिम लेने से उन्हें डर नहीं लगता और वे यह भी बखूबी जानते हैं कि कब, कहां और कितना जोखिम लेना है।

शतरंज की चालें चलने वाला गेमलर

दीपक की दूरदर्शिता इस बात से साबित होती है कि उन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर फिर से काबिज होने की योजना तब ही बना ली थी, जब चुनाव दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहे थे। उन्होंने उस रणनीति पर पहले ही काम शुरू कर दिया था, जिस पर वे जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतने के बाद काम कर रहे हैं। यह उनकी चतुराई और शतरंज की चालों को चालाकी से चलने वाले एक माहिर राजनितिक खिलाड़ी होने का प्रमाण है।

भविष्य का फैसला और नई चुनौती

अगस्त 2025 का महीना तय करेगा कि दीपक बिजल्वाण फिर से जिला पंचायत अध्यक्ष बनकर नया इतिहास लिखते हैं या फिर वे भी पुराने लोगों की तरह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएंगे। इस बार के चुनाव में उन्हें चुनौती देने के लिए कई नाम सामने आ रहे हैं, जो जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने का ख्वाब संजो रहे हैं।

असली परीक्षा यहीं होती है

इस चुनाव में पैसा भले ही मायने रखता हो, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा राजनीतिक हुनर काम आता है। दावेदारों की असली परीक्षा यहीं होती है। कुछ के पास पैसा तो होता है, पर उसे खर्च करने का तरीका और साहस नहीं होता, जबकि कुछ लोग भले ही आर्थिक रूप से उतने मज़बूत न हों, लेकिन उनका कुशल प्रबंधन और कौशल उन्हें सफलता दिलाता है।

अंतिम आरक्षण का इन्तजार 

फिलहाल, मामला आरक्षण पर अटका हुआ है। उत्तरकाशी में इसे लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि सीट को महिला आरक्षित कराने के लिए कुछ दावेदार पूरा ज़ोर लगा रहे हैं। हालांकि, होगा वही, जो नियमों के अनुसार उचित होगा। सभी की निगाहें एक बार फिर उत्तरकाशी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों पर टिकी हैं। क्या दीपक बिजल्वाण अपनी अनूठी शैली और रणनीतिक चालों से इस बार भी बाज़ी मारेंगे, या कोई नया चेहरा सामने आएगा? यह देखना दिलचस्प होगा।

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