बड़कोट : राधा-बल्लभ परंपरा के संत श्री सहचरी चरणदास महाराज का निधन, आज दुनकेश्वर महादेव मंदिर के समीप दी जाएगी समाधि

बड़कोट: उत्तरकाशी जिले के नौगांव ब्लॉक के ग्राम बिगराड़ी स्थित श्री दुनकेश्वर महादेव मंदिर के संत श्री राधा-बल्लभ संप्रदाय के प्रतिष्ठित संत श्री श्री सहचरी चरणदास महाराज अब इस नश्वर संसार से विदा लेकर परलोक को प्रस्थान कर गए हैं। वर्षों तक भक्ति, वैराग्य और राधा प्रेम की अखंड साधना में रत रहने वाले इस दिव्य संत के निधन से न केवल संप्रदाय में, बल्कि व्यापक संत समाज और जनमानस में शोक की लहर  है।

यहां दी जाएगी समाधि 

उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनको आज 13 मई को  श्री दुनकेश्वर महादेव मंदिर के समक्ष स्थित पवित्र भूमि पर समाधि दी जाएगी। यह वही स्थान है, जहां उन्होंने जीवन के अनेक वर्ष साधना, मौन और तप में बिताए थे। 

बचपन में ही सन्यास, सेवा का अद्भुत सफर

श्री सहचरी चरणदास महाराज ने बचपन में ही गृहस्थ जीवन त्याग दिया था और संन्यास का व्रत ले लिया था। उन्होंने महाकुंभ आयोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महाकुंभ संचालन समिति के सचिव पद पर रहते हुए अपनी सेवा से सभी को प्रभावित किया। वे केवल एक संत नहीं थे, वे एक विचारक, एक मार्गदर्शक और एक नीति-प्रवर्तक भी थे।

शास्त्रों के ज्ञाता, राजनीति के मर्मज्ञ

शास्त्रों, वेदों और पुराणों की गहन विद्वता के साथ-साथ सहचरी चरणदास महाराज जी भारत की विदेश नीति, नीति शास्त्र और राजनीतिक शास्त्र में भी विशेष रुचि रखते थे। उनसे हुई चर्चाओं में अक्सर धर्म और राजनीति का अद्भुत समन्वय झलकता था। 

अंतिम संवाद, अंतिम संकेत

कल ही उनसे अंतिम बार फोन पर बातचीत हुई थी। वृंदावन धाम से वे लौटकर अपने मूल स्थान दुनकेश्वर महादेव मंदिर आने को लेकर उत्सुक थे। बातचीत में उनकी आवाज़ में एक विशेष प्रकार की शांति और तृप्ति थी, जैसे वे किसी उच्च उद्देश्य की पूर्ति की ओर बढ़ रहे हों।

संयोग देखिए, जैसे ही वे मंदिर परिसर में पहुँचे, उन्होंने एक कप चाय पी और शांत भाव से शरीर का त्याग कर दिया। यह उनकी साधना का चरम बिंदु था, कोई हड़बड़ाहट नहीं, कोई शोर नहीं, बस एक मौन विदाई।

श्रद्धांजलि और स्मृति

श्री श्री सहचरी चरणदास महाराज केवल एक संत नहीं थे, वो एक युग थे, जो भले ही अब शरीर से हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी वाणी, उनका दर्शन और उनका प्रेम अमर रहेगा। आज उनको समाधि दी जाएगी।

 

ॐ शांति शांति शांति

संत परंपरा को शत-शत नमन।

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