- प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’
इसी साल कुछ महीने पहले ही उत्तराखंड की बदरीनाथ और मंगलौर सीटों पर विधानसभा के उप चुनाव हुए। दोनों ही सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। दो सीटों की जीत ने कांग्रेस में उत्साह जरूर भरा, लेकिन कांग्रेस की गुटबाजी है उस पर भारी पड़ रही है। भाजपा दो सीटों पर मिल हार का बदला लेना चाहेगी। केदारनाथ सीट का उप चुनाव आने वाले चुनावों के लिए माहौल सेट करने वाला होगा। क्योंकि केदारनाथ उपचुनाव के बाद निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव होने हैं।
कहानी केवल इतनी ही नहीं है। निकाय और पंचायत चुनावों के परिणाम 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी असर दिखा सकते हैं। ऐसे में दोनों ही राजनीतिक दल पूरा जोर लगा रहे हैं। दोनों ही हर हाल में केदारनाथ उपचुनाव में इस सीट को जीतना चाहते हैं। हालांकि, अब दोनों ही दलों भाजपा-कांग्रेस ने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान नहीं किया है।
केदारनाथ विधानसभा चुनाव में जीत के लिए दोनों ही दल जोर लगा रहे हैं। चुनाव परिणामों का असर निकाय और पंचायत चुनावों पर भी साफ नजर आएगा। अगर भाजपा चुनाव हारती है, तो कांग्रेस को यहां से एक बूस्टर जरूरी मिलेगा। लेकिन, अगर कांग्रेस यहां चुनाव हार जाती है, तो उससे निकाय और पंचायत चुनाव में उसे नए सिरे से सोचने की जरूरत होगी। केदारनाथ धाम में पीएम मोदी हर साल पहुंचते हैं, ऐसे में उनके लिए भी परिणामों के मायने होंगे।
20 नवंबर को होने जा रहे केदारनाथ उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस लगातार जीत के दावे कर रहे हैं। भाजपा को इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहारा है। भाजपा उन्हीं के नाम का राग अलाप रही है। भाजपा कह रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केदारनाथ और उत्तराखंड से खास लगाव है।
वहीं, कांग्रेस केदारनाथ धाम का अपमान करने का भाजपा पर अरोप लगा रही है। पिछले दिनों दिल्ली में केदारनाथ मंदिर बनाने को लेकर खूब बवाल भी मचा था। मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी गए थे। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने केदारनाथ प्रतिष्ठिा यात्रा भी निकाली थी। हालांकि, इस प्रष्ठिा यात्रा के दौरान कांग्रेस की गुटबाजी भी उभरकर सामने आई थी।
कांग्रेस में दो धड़े साफतौर पर नजर आ रहे हैं। एक धड़ा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और दूसरा धड़ा गणेश गोदियाल की ओर झुका हुआ है। हालांकि, गोदियाल हमेशा ही गुटबाजी से साफ इंकार करते रहे हैं, लेकिन अपनी बातों को वो बहुत ही बेबाकी से रखते नजर आते हैं। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष भले ही करन माहरा हों, लेकिन पॉवर सेंटर कहीं ना कहीं गोदियाल ही बने हुए हैं।
कांग्रेस में पिछले एक-दो सालों में बहुत बदलाव देखने को मिला है। हमेशा आमने-सामने नजर आने वाले हरीश रावत और प्रीतम सिंह अचानक चुप हो गए हैं। हरीश रावत तो सुर्खियों में बने रहते हैं, लेकिन प्रीतम सिंह की सक्रियता पहले से कम है। इसके अलावा कांग्रेस में कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो शीतयुद्ध की तर्ज पर अपना काम करते हैं।
दूसरी ओर भाजपा में गुटबाजी नजर नहीं आती है। भाजपा में संगठन ही सबकुछ तय करता है। सार्वजनिक बयानबाजी भी भाजपा खेमे में नेता ना तो करते हैं और ना ही पार्टी संगठन किसी नेता को इसकी अनुमति देता है। यही वजह है कि नेताओं के बीच आपसी खींचातान होने के बाद सबकुछ व्यवस्थित नजर आता है।
बहरहाल, सभी को इंतजार है कि भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने पत्ते खोलें, लेकिन दोनों ही खेमों में फिलहाल चर्चाओं का दौर चल रहा है। यह भी माना जा रहा है कि दोनों ही राजनीतिक दल एक-दूसरे की रणनीति पर नजर बनाए हुए हैं। अब देखना यह होगा कि केदारनाथ के रण में किसकी तरफ से कौन मोर्चा संभालता है?